साये का पीछा रहस्य, हिम्मत और मोहब्बत की दास्तान
मेरा नाम अनन्या है। मैं सूरजपुर गाँव की रहने वाली हूँ, एक ऐसा गाँव जो अपनी शांत वादियों, हरे-भरे खेतों और तालाबों की खूबसूरती के लिए जाना जाता है। सूरजपुर की हर गली, हर पेड़ और हर तालाब के साथ कोई न कोई कहानी जुड़ी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। कुछ कहानियाँ खुशी और प्यार की होती हैं, तो कुछ रहस्य और डर से भरी। लेकिन आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रही हूँ, वह मेरे जीवन की सबसे रहस्यमयी और डरावनी घटना है। यह कहानी एक साये की है, जो मेरे पीछे पड़ा था। इसने न सिर्फ मेरे दिल को झकझोर दिया, बल्कि मेरे गाँव की शांति को भी भंग कर दिया। और इस बीच, मुझे एक ऐसी मोहब्बत मिली, जिसने मेरी जिंदगी को एक नया रंग दिया।
सूरजपुर एक छोटा सा गाँव था, जहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता था। यहाँ के लोग अपनी सादगी और मेहनत से जिंदगी जीते थे। मेरे परिवार में मेरी माँ, मेरा छोटा भाई रवि, और मैं थी। मेरे पिता का देहांत तब हुआ था, जब मैं सिर्फ नौ साल की थी। एक सड़क हादसे ने उन्हें हमसे छीन लिया था। तब से माँ ने हमें पालने के लिए दिन-रात मेहनत की। मैं अब 23 साल की थी और गाँव के खेतों में काम करती थी, ताकि माँ को कुछ राहत मिल सके। रवि, जो अब 15 साल का था, गाँव से कुछ किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ता था।
हमारा गाँव बेहद खूबसूरत था। यहाँ की हरियाली, तालाबों की शांति और सुबह की ताज़ा हवा हर किसी का मन मोह लेती थी। लेकिन सूरजपुर में कुछ ऐसी बातें थीं, जो इसे और गाँवों से अलग करती थीं। गाँव के पास एक घना जंगल था, जिसके बारे में लोग तरह-तरह की कहानियाँ सुनाते थे। कुछ कहते थे कि रात को वहाँ अजीब-अजीब आवाजें आती हैं—कभी हँसी, कभी रोने की आवाज, तो कभी कदमों की आहट। कुछ लोग इसे भूत-प्रेत की कहानियाँ मानते थे, तो कुछ इसे जंगली जानवरों का शोर कहकर टाल देते थे। मैं इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देती थी। मेरे लिए जिंदगी का मतलब था माँ और रवि का ख्याल रखना, खेतों में मेहनत करना और अपने छोटे-मोटे सपनों को संजोना—जैसे कि एक दिन शहर जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करना।
लेकिन एक रात, सब कुछ बदल गया।
यह जुलाई की एक गर्म रात थी। रात के करीब 11:30 बजे थे, और मैं अपने घर के आँगन में चारपाई पर लेटी थी। माँ और रवि अंदर सो रहे थे। गाँव में बिजली की समस्या आम थी, और उस रात भी बिजली गुल थी। आसमान में चाँद की हल्की रोशनी थी, लेकिन हवा में एक अजीब सा सन्नाटा था। मैं बेचैन सी महसूस कर रही थी, जैसे कोई अनहोनी होने वाली हो। तभी मुझे गली के कोने से एक अजीब सी आवाज सुनाई दी। यह कोई सामान्य कदमों की आवाज नहीं थी—यह भारी और घिसटती हुई थी, जैसे कोई रेत और पत्थरों पर धीरे-धीरे चल रहा हो।
मैंने सोचा शायद कोई गाँववाला होगा, जो रात को टहल रहा हो। लेकिन इतनी रात को कौन बाहर निकलता? मैं धीरे से उठी और गली की ओर देखने के लिए दरवाजे तक गई। अंधेरे में कुछ साफ नहीं दिख रहा था, लेकिन वह आवाज और करीब आ रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। मैंने अपने दुपट्टे को कसकर पकड़ा और गली में झाँका।
तभी, अंधेरे में मुझे दो चमकती हुई आँखें दिखीं। वे आँखें किसी इंसान की नहीं थीं—वे बड़ी, लाल और डरावनी थीं, जैसे किसी जंगली जानवर की। मैं डर के मारे पीछे हट गई, लेकिन मेरे पैर जैसे जम गए थे। वह चीज धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़ रही थी। मैंने हिम्मत जुटाई और जोर से चिल्लाई, "कौन है वहाँ?" मेरी आवाज सुनकर वह चीज रुक गई, और फिर अचानक अंधेरे में गायब हो गई।
मैं काँप रही थी। मैंने जल्दी से दरवाजा बंद किया और अंदर भाग गई। उस रात मुझे नींद नहीं आई। मैं सोचती रही कि वह क्या था? क्या वह कोई जानवर था, या फिर गाँव की उन पुरानी कहानियों का कोई साया?
अगले दिन मैंने यह बात अपनी सहेली प्रिया को बताई। प्रिया मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी और गाँव की सबसे नटखट और हिम्मती लड़की मानी जाती थी। वह मेरी बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "अनन्या, तू भी ना, रात को अंधेरे में डर गई होगी। शायद कोई सियार या कुत्ता रहा होगा।" मैंने उसे उन चमकती आँखों के बारे में बताया, लेकिन उसने मेरी बात को मजाक में टाल दिया।
उसी दिन शाम को, जब मैं खेतों से लौट रही थी, मेरी मुलाकात अर्जुन से हुई। अर्जुन कुछ महीने पहले ही सूरजपुर आया था। वह शहर से था और गाँव में एक छोटा सा स्कूल शुरू करने की योजना बना रहा था। वह लंबा, गोरा, और बेहद आकर्षक था। उसकी मुस्कान में एक अजीब सा सुकून था, जो मुझे तुरंत भा गया। उसने मुझसे पूछा, "अनन्या, तुम इतनी परेशान क्यों दिख रही हो?" मैंने हिचकिचाते हुए उसे रात की घटना बताई।
अर्जुन ने मेरी बात ध्यान से सुनी और बोला, "शायद यह तुम्हारा वहम हो, लेकिन अगर तुम्हें फिर से कुछ अजीब लगे, तो मुझे जरूर बताना। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।" उसकी बातों में एक अजीब सी गर्माहट थी, जो मेरे डर को थोड़ा कम कर गई। मैंने मुस्कुराकर उसका शुक्रिया अदा किया और घर चली गई। लेकिन मेरे मन में अर्जुन की बातें और उसकी मुस्कान बार-बार घूम रही थी।
अगली रात, वही हुआ। इस बार मैंने उस चीज को और करीब से देखा। वह कोई जानवर नहीं था। यह एक इंसान जैसी आकृति थी, लेकिन उसका चेहरा अंधेरे में साफ नहीं दिख रहा था। वह मेरे घर के सामने रुका और बस मुझे घूरता रहा। मैंने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज गले में अटक गई। वह चीज धीरे-धीरे मेरे घर की ओर बढ़ी, और फिर अचानक गायब हो गई।
इस बार मैंने यह बात माँ को बताई। माँ बहुत डर गईं और बोलीं, "बेटी, यह कोई अच्छा संकेत नहीं है। हमें गाँव के पंडित जी से बात करनी चाहिए।" मैंने माँ को समझाने की कोशिश की कि शायद यह मेरा वहम है, लेकिन मेरे मन में भी डर बैठ गया था।
अगले दिन मैंने अर्जुन को यह बात बताई। वह गंभीर हो गया और बोला, "अनन्या, मुझे नहीं लगता कि यह कोई साधारण बात है। मैं तुम्हारे साथ रहूँगा और इस साये का पता लगाऊँगा।" उसकी बातों से मुझे हिम्मत मिली। उसने मुझे अपने साथ गाँव के पुराने हिस्से में चलने के लिए कहा, जहाँ वह कुछ बुजुर्गों से इस बारे में बात करना चाहता था।
अर्जुन और मैं गाँव के बुजुर्गों से मिलने गए। एक बूढ़े दादाजी, जिन्हें सब नाना जी कहते थे, ने हमें बताया कि सूरजपुर के जंगल में एक पुरानी हवेली है, जो कई साल पहले एक अमीर सेठ की थी। सेठ की बेटी, मालती, की रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गई थी। तब से लोग कहते थे कि उसकी आत्मा जंगल में भटकती है। नाना जी ने यह भी बताया कि मालती की मृत्यु के बाद सेठ ने गाँव छोड़ दिया था, और हवेली वीरान हो गई थी।
अर्जुन ने मुझसे कहा, "अनन्या, अगर हमें सच जानना है, तो हमें उस हवेली में जाना होगा।" मैं डर रही थी, लेकिन अर्जुन की हिम्मत और उसकी साथ देने की बात ने मुझे साहस दिया। हमने प्रिया को भी अपने साथ लिया और जंगल की ओर चल पड़े।
जंगल में घुसते ही एक अजीब सा माहौल था। हवा ठंडी थी, और हर तरफ सन्नाटा। हम हवेली की ओर बढ़े। रास्ते में अर्जुन ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ।" उसका स्पर्श मेरे लिए एक नई ताकत लेकर आया। मैंने उसकी ओर देखा और मुस्कुराई। उस पल में मुझे लगा कि शायद यह डरावना सफर भी इतना बुरा नहीं है।
हवेली जर्जर हालत में थी। दीवारें टूटी हुई थीं, और हर तरफ धूल और मकड़ियों के जाले थे। हमने हवेली के अंदर कुछ पुराने सामान देखे—टूटी हुई तस्वीरें, पुराने कपड़े, और एक डायरी। डायरी में लिखा था कि मालती की मृत्यु कोई हादसा नहीं थी। उसे गाँव के एक प्रभावशाली व्यक्ति ने मार डाला था, क्योंकि वह मालती से प्यार करता था, लेकिन मालती ने उसे ठुकरा दिया था।
यह पढ़कर हम हैरान रह गए। डायरी में उस व्यक्ति का नाम भी लिखा था—रघु ठाकुर, जो अब गाँव का सरपंच था। मैंने अर्जुन की ओर देखा, और उसने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा, "अनन्या, हमें सावधान रहना होगा। यह साया कोई आत्मा नहीं, बल्कि कोई साजिश है।"
हवेली से लौटते वक्त अर्जुन और मैंने बहुत देर तक बात की। उसने मुझे बताया कि वह सूरजपुर इसलिए आया था, क्योंकि वह शहर की भागदौड़ से तंग आ चुका था। वह यहाँ एक नई शुरुआत करना चाहता था। उसकी बातों में एक सच्चाई थी, जो मुझे छू गई। मैंने भी उसे अपने सपनों के बारे में बताया—शहर जाकर पढ़ाई पूरी करने का सपना, और अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देने का सपना।
उस रात, जब हम गाँव वापस लौटे, अर्जुन ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "अनन्या, मैं नहीं चाहता कि तुम अकेले इस साये का सामना करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, चाहे जो हो जाए।" उसकी आँखों में मेरे लिए चिंता थी, और शायद कुछ और भी। मैंने उसका हाथ थाम लिया और धीरे से कहा, "शुक्रिया, अर्जुन। तुम्हारे होने से मुझे हिम्मत मिलती है।"
हमने डायरी को गाँव के सरपंच रघु ठाकुर को दिखाने का फैसला किया। लेकिन उससे पहले, अर्जुन ने कुछ गाँववालों को इस बारे में बताया। पंचायत बुलाई गई, और डायरी को सबके सामने पढ़ा गया। रघु ठाकुर ने पहले तो इनकार किया, लेकिन जब गाँव वालों ने दबाव डाला, तो उसने सच उगल दिया। उसने बताया कि उसने मुझे डराने के लिए एक व्यक्ति को भेजा था, जो रात को अजीब कपड़े पहनकर मेरे घर के पास आता था। वह नहीं चाहता था कि मालती की मृत्यु का राज खुल जाए।
गाँव वालों ने रघु ठाकुर को सजा दी, और मेरी शादी की बात रद्द कर दी गई। मैंने और अर्जुन ने मिलकर गाँव में एक स्कूल शुरू किया, जहाँ लड़कियों को पढ़ाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम शुरू हुआ।
समय के साथ, मैं और अर्जुन और करीब आए। उसने मुझे अपने दिल की बात बताई—वह मुझसे प्यार करता था। मैं भी उसे चाहने लगी थी, लेकिन अपने परिवार की जिम्मेदारियों के चलते मैं हिचक रही थी। एक दिन, उसने मुझे तालाब के किनारे बुलाया और कहा, "अनन्या, मैं तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूँ। तुम्हें अपने सपनों को छोड़ने की जरूरत नहीं। हम साथ मिलकर सब कुछ करेंगे।"
उसकी बातों ने मेरा दिल जीत लिया। मैंने हाँ कह दी, और हमने एक नई शुरुआत की। सूरजपुर अब सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए नहीं, बल्कि अपनी बेटियों की हिम्मत और प्यार की कहानियों के लिए भी जाना जाता है।
यह कहानी मेरे साहस, मेरी दोस्ती, और मेरे प्यार की कहानी है। साये का पीछा करने की मेरी हिम्मत ने न सिर्फ मुझे और मेरे गाँव को बचाया, बल्कि मुझे एक ऐसी मोहब्बत दी, जो मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा बन गई। आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि सूरजपुर की बेटियाँ अब डर से नहीं, बल्कि अपने सपनों और प्यार के साथ जीती हैं।