मेरा नाम अनन्या है। मैं दिल्ली की एक 32 साल की कामकाजी महिला हूँ, जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के तौर पर काम करती हूँ। मेरी जिंदगी बाहर से देखने में परफेक्ट लगती थी—एक अच्छी नौकरी, एक प्यारा सा अपार्टमेंट, और एक प्यार करने वाला पति, रोहन। हमारी शादी को पाँच साल हो चुके थे, और शुरुआती सालों में हमारी जिंदगी किसी रोमांटिक फिल्म की तरह थी। लेकिन पिछले कुछ महीनों से मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। मैंने एक दिन रोहन से कहा, "सेक्स में मेरी दिलचस्पी कम होने लगी है।" यह सुनकर रोहन हैरान रह गया। उसने मुझसे पूछा, "क्या बात है, रेखा क्या मैंने कुछ गलत किया?" लेकिन मुझे खुद नहीं पता था कि मेरे साथ क्या हो रहा था। यह कहानी उसी बेचैनी की है, जो मुझे एक अनजान रास्ते पर ले गई, और जिसने मेरी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
मेरी जिंदगी हमेशा से तेज रफ्तार में रही थी। सुबह 7 बजे अलार्म बजता, मैं जल्दी से तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल पड़ती। दिनभर मीटिंग्स, प्रेजेंटेशन्स, और डेडलाइन्स का पीछा। शाम को घर लौटने पर रोहन और मैं डिनर करते, कुछ देर टीवी देखते, और फिर सो जाते। हमारी जिंदगी एक रूटीन में बंधी हुई थी। लेकिन पिछले कुछ महीनों से मुझे लगने लगा था कि मेरे अंदर कुछ टूट रहा है। रोहन जब भी मेरे करीब आने की कोशिश करता, मैं खुद को पीछे खींच लेती। यह कोई शारीरिक थकान नहीं थी; यह एक मानसिक और भावनात्मक खालीपन था।
रोहन ने कई बार मुझसे पूछा, "रेखा क्या मैं कुछ कर सकता हूँ?" लेकिन मैं उसे कोई जवाब नहीं दे पाती थी। मुझे लगता था कि शायद यह मेरी नौकरी का तनाव है, या शायद उम्र के साथ मेरी प्राथमिकताएँ बदल रही हैं। मैंने अपने दोस्तों से इस बारे में बात करने की कोशिश की, लेकिन मुझे डर था कि वे मुझे जज करेंगे। आखिरकार, हमारी संस्कृति में ऐसी बातें खुलकर नहीं की जातीं।
एक दिन, ऑफिस में मेरी सहेली मेघना ने मेरी उदासी देखी और पूछा, "क्या बात है, रेखा तुम कुछ दिनों से खोई-खोई सी रहती हो।" मैंने हिचकिचाते हुए उसे अपनी समस्या बताई। मेघना ने मेरी बात ध्यान से सुनी और बोली, "शायद तुम्हें किसी प्रोफेशनल से बात करनी चाहिए। यह कोई असामान्य बात नहीं है।" उसने मुझे एक थेरेपिस्ट का नंबर दिया और कहा, "डॉ. स्मिता वर्मा बहुत अच्छी हैं। उनसे मिलकर देखो।"
मैंने बहुत हिम्मत जुटाकर डॉ. स्मिता वर्मा से अपॉइंटमेंट लिया। उनकी क्लिनिक दिल्ली के एक शांत इलाके में थी। मैं थोड़ा नर्वस थी, लेकिन डॉ. स्मिता की गर्मजोशी ने मुझे सहज कर दिया। उन्होंने मुझसे मेरी जिंदगी, मेरे रिश्तों, और मेरे मन की बातों के बारे में पूछा। मैंने उन्हें बताया कि मुझे वो काम में दिलचस्पी कम होने लगी है, और यह मेरे और रोहन के रिश्ते पर असर डाल रहा है।
डॉ. स्मिता ने मुझे बताया कि यह एक आम समस्या है, जिसके कई कारण हो सकते हैं—तनाव, हार्मोनल बदलाव, या भावनात्मक दूरी। उन्होंने मुझे कुछ सवाल पूछे: "क्या तुम रोहन के साथ खुलकर बात करती हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में कुछ कमी है?" मैंने सोचा, शायद यह सब
मेरे काम के दबाव की वजह से है। लेकिन फिर उन्होंने मुझसे एक ऐसी बात पूछी, जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया: "अनन्या, क्या तुम अपनी जिंदगी में खुश हो?"
यह सवाल मेरे लिए एक झटके की तरह था। मैंने हमेशा सोचा था कि मेरी जिंदगी परफेक्ट है। लेकिन क्या मैं वाकई खुश थी? मैंने डॉ. स्मिता से कहा, "मुझे नहीं पता। शायद मैं खुश हूँ, लेकिन फिर भी कुछ गायब सा लगता है।"
डॉ. स्मिता की सलाह पर मैंने रोहन से खुलकर बात करने का फैसला किया। एक रात, डिनर के बाद, मैंने उससे कहा, "रोहन, मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।" वह थोड़ा चिंतित दिखा, लेकिन उसने मेरी बात ध्यान से सुनी। मैंने उसे अपने मन की सारी बातें बताईं—मेरी बेचैनी, मेरा खालीपन, और मेरी कम होती दिलचस्पी।
रोहन ने मेरी बात सुनी और फिर धीरे से मेरा हाथ पकड़ा। "अनन्या, मुझे नहीं पता था कि तुम इतना कुछ महसूस कर रही हो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। हम इसे मिलकर सुलझाएँगे।" उसकी बातों से मुझे सुकून मिला, लेकिन साथ ही मुझे यह भी लगा कि यह मेरी अकेले की बात है। रोहन मेरी मदद कर सकता था, लेकिन मुझे खुद अपने अंदर की सैर करनी थी।
रोहन ने सुझाव दिया कि हम एक छोटा सा ब्रेक लें और कहीं घूमने जाएँ। "शायद एक नई जगह हमें ताज़गी दे," उसने कहा। मैंने हामी भरी, और हमने हिमाचल के एक छोटे से हिल स्टेशन, कसौली, की यात्रा प्लान की।
कसौली की ठंडी हवाएँ और हरे-भरे पहाड़ मेरे लिए एक नया अनुभव थे। हम एक छोटे से कॉटेज में रुके, जो जंगल के बीच में था। वहाँ का सन्नाटा और प्रकृति की सुंदरता मेरे मन को शांत कर रही थी। रोहन ने मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने की कोशिश की। हम सुबह-सुबह जंगल में टहलने जाते, और शाम को कॉटेज की बालकनी में बैठकर कॉफी पीते।
एक रात, जब हम बालकनी में बैठे थे, रोहन ने मुझसे पूछा, "अनन्या, क्या तुम्हें याद है कि हम कैसे मिले थे?" मैं हँस पड़ी। हम कॉलेज में मिले थे, जब मैं एक डिबेट कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले रही थी, और रोहन मेरे अपोनेंट था। उसकी तर्क करने की कला और हाजिरजवाबी ने मुझे इम्प्रेस किया था। उस रात हमने पुरानी यादें ताज़ा कीं, और मुझे एहसास हुआ कि हमारी जिंदगी में कितना प्यार था, जो शायद रूटीन की भागदौड़ में कहीं खो गया था।
लेकिन कसौली की ताज़गी के बावजूद, मेरा मन पूरी तरह शांत नहीं हुआ। मुझे लगता था कि मेरे अंदर का खालीपन अभी भी बाकी है।
कसौली में हमारी मुलाकात एक स्थानीय आर्टिस्ट, विक्रम, से हुई। विक्रम एक चित्रकार था, जो जंगल में अपनी छोटी सी स्टूडियो में पेंटिंग्स बनाता था। उसकी पेंटिंग्स में एक अजीब सी गहराई थी, जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी। एक दिन, जब मैं और रोहन उसकी स्टूडियो में गए, विक्रम ने मुझसे कहा, "आपकी आँखों में एक कहानी है, अनन्या। क्या आप इसे मेरे कैनवास पर उतरने देंगी?"
मैंने हँसकर उसकी बात टाल दी, लेकिन विक्रम ने मुझसे कहा कि मैं एक दिन उसकी स्टूडियो में आऊँ और पेंटिंग सीखूँ। "कभी-कभी, अपने मन की बातें रंगों में व्यक्त करना आसान होता है," उसने कहा। मैंने सोचा, शायद यह एक अच्छा तरीका हो सकता है मेरे अंदर की बेचैनी को बाहर निकालने का
मैंने विक्रम के साथ पेंटिंग शुरू की। हर रविवार को मैं उसकी स्टूडियो में जाती, और वह मुझे रंगों, ब्रशों, और कैनवास की दुनिया से परिचित करवाता। पेंटिंग करते वक्त मुझे एक अजीब सा सुकून मिलता था। मेरे मन की उलझनें, मेरी बेचैनी, और मेरा खालीपन—सब कुछ कैनवास पर रंगों के रूप में उतरने लगा।
विक्रम एक अच्छा दोस्त बन गया। वह मेरी बातें सुनता, और कभी-कभी मुझे मेरे ही मन की गहराइयों में ले जाता। एक दिन, जब मैं एक काला-सफेद पेंटिंग बना रही थी, उसने पूछा, रेखा तुम्हारी जिंदगी में रंग क्यों नहीं हैं?" मैंने उसकी ओर देखा और कहा, "शायद इसलिए कि मैंने रंगों को देखना बंद कर दिया।"
विक्रम ने मुस्कुराकर कहा, "तो फिर से देखना शुरू करो। जिंदगी रंगों से भरी है, बस उन्हें अपनाने की जरूरत है।"
विक्रम की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मैंने फैसला किया कि मुझे रोहन के साथ और खुलकर बात करनी होगी। एक रात, मैंने उसे अपनी पेंटिंग्स दिखाईं। मैंने उसे बताया कि पेंटिंग करने से मुझे अपने मन की बातें समझने में मदद मिल रही है। रोहन ने मेरी पेंटिंग्स देखीं और कहा, "अनन्या, ये तो कमाल हैं! तुम्हें नहीं पता था कि तुम इतनी क्रिएटिव हो?"
उसकी तारीफ ने मेरे मन को हल्का किया। उस रात, हमने देर तक बात की। मैंने उसे बताया कि मुझे लगता है कि मेरी बेचैनी का कारण मेरी जिंदगी का एकरस होना है। "मुझे लगता है कि मैंने खुद को भूल लिया है," मैंने कहा। रोहन ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "तो हम मिलकर तुम्हें फिर से ढूँढेंगे।"
पेंटिंग और रोहन के साथ खुली बातचीत ने मेरे मन को हल्का किया। मैंने डॉ. स्मिता के साथ अपनी थेरेपी सेशन्स जारी रखे, और धीरे-धीरे मुझे अपने अंदर की बेचैनी का कारण समझ आने लगा। यह न सिर्फ मेरे काम का तनाव था, बल्कि मेरी अपनी पहचान को खोने का डर भी था। मैंने अपनी जिंदगी को सिर्फ नौकरी और रिश्तों तक सीमित कर लिया था, और अपने लिए वक्त नहीं निकाल रही थी।
मैंने और रोहन ने मिलकर कुछ नए शौक अपनाए। हमने साथ में डांस क्लास जॉइन की, और हर वीकेंड को कुछ नया करने की कोशिश की—कभी मूवी नाइट, तो कभी छोटी-मोटी ट्रिप। धीरे-धीरे, मेरे और रोहन के बीच की दूरी कम होने लगी। मेरी वो करने में दिलचस्पी भी धीरे-धीरे लौटने लगी, क्योंकि अब यह सिर्फ एक शारीरिक जरूरत नहीं थी—यह हमारे प्यार और करीबी का हिस्सा बन गया था।
एक साल बाद, मैंने अपनी पहली आर्ट एग्जिबिशन आयोजित की। विक्रम ने मेरी बहुत मदद की, और मेरी पेंटिंग्स को
देखकर लोग हैरान रह गए। रोहन मेरे साथ हर कदम पर खड़ा रहा। उस दिन, जब मैं अपनी पेंटिंग्स के बीच खड़ी थी, मुझे एहसास हुआ कि मैंने न सिर्फ अपने मन का खालीपन भरा था, बल्कि अपनी जिंदगी में रंग भी जोड़े थे।
यह कहानी मेरे साहस, मेरे प्यार, और मेरे आत्म-खोज की कहानी है। "वो काम में मेरी दिलचस्पी कम होने लगी" सिर्फ एक वाक्य नहीं था—यह मेरे मन की उस बेचैनी का प्रतीक था, जिसने मुझे मेरे अंदर की गहराइयों में ले जाया। आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि मैंने न सिर्फ अपने रिश्ते को बचाया, बल्कि खुद को भी फिर से पाया। मेरी जिंदगी अब रंगों से भरी है, और रोहन के साथ मेरा प्यार पहले से कहीं ज्यादा गहरा है। दोस्तों कहानी पसंद आई हो तो लाइक करें