बाहर की बरसात emotional story in hindi

बाहर की बरसात emotional story in hindi 



यह कहानी एक छोटे से गाँव की है, जहाँ रिश्तों की गर्माहट और भावनाओं की गहराई एक अनोखा रंग लाती है। यह कहानी रमेश और उनकी बहू अनन्या की है, जो एक अप्रत्याशित और अनकहे बंधन में बंधते हैं। यह रिश्ता न तो पूरी तरह प्रेम है, न ही केवल स्नेह, बल्कि एक ऐसी भावना है जो सामाजिक बंधनों और परंपराओं से परे है। यह कहानी उनके बीच की नाजुक भावनाओं, गाँव की रूढ़ियों, और समाज के दबावों की एक मार्मिक दास्तान है।


अध्याय 1: गाँव की हवेली


रमेश, 55 वर्षीय एक विधुर, गाँव की एक पुरानी हवेली में अकेले रहते थे। उनकी हवेली, जो कभी उनके परिवार की हँसी-खुशी का गवाह थी, अब केवल खामोशी और यादों का ठिकाना थी। रमेश के बेटे, रोहन, ने शहर में एक अच्छी नौकरी पा ली थी और वह अपनी पत्नी अनन्या के साथ वहाँ रहता था। लेकिन रोहन की नौकरी इतनी व्यस्त थी कि वह गाँव शायद ही आ पाता। अनन्या, एक 28 वर्षीय जीवंत और समझदार लड़की, ने अपने ससुर रमेश की देखभाल का जिम्मा उठाया और हवेली में उनके साथ रहने का फैसला किया।


अनन्या की आँखों में एक चमक थी, जो गाँव की सादगी के बीच भी शहर की ताजगी को दर्शाती थी। वह हँसमुख थी, हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार, और गाँव के बच्चों को पढ़ाने में समय बिताती थी। रमेश, जो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद से चुप और अंतर्मुखी हो गए थे, शुरू में अनन्या से दूरी बनाए रखते थे। वह नहीं चाहते थे कि गाँव वाले उनके रिश्ते को गलत समझें। लेकिन अनन्या की सादगी और उसका अपने ससुर के प्रति सम्मान धीरे-धीरे रमेश के कठोर बाहरी आवरण को तोड़ने लगा।


अध्याय 2: बारिश का वह पल


एक दिन, मॉनसून की तेज बारिश में अनन्या खेतों से लौट रही थी। वह पूरी तरह भीग चुकी थी, और उसकी साड़ी कीचड़ से सनी थी। रमेश ने उसे हवेली के बरामदे में ठिठकते हुए देखा। वह तुरंत अंदर गए और अपनी पत्नी का पुराना शॉल ले आए। उन्होंने अनन्या को शॉल ओढ़ाया और कहा, "बाहर की बरसात ठंडी होती है, बीमार पड़ जाओगी।" अनन्या ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "पिताजी, आपकी इतनी फिक्र मुझे मेरी माँ की याद दिलाती है।"


यह छोटा सा पल दोनों के बीच एक नई शुरुआत था। अनन्या ने रमेश की इस छोटी सी चिंता को दिल से लिया, और रमेश को अनन्या की मुस्कान में एक अजीब सा सुकून मिला। उस रात, जब अनन्या ने रमेश के लिए गर्म चाय बनाई, दोनों ने हवेली के आँगन में बैठकर देर तक बातें कीं। रमेश ने अपनी जवानी के किस्से सुनाए—कैसे वह अपनी पत्नी के साथ गाँव के मेले में जाया करते थे, और कैसे वह अपने बेटे रोहन को कंधों पर बिठाकर खेतों में घूमा करते थे। अनन्या ने हँसते हुए शहर की अपनी जिंदगी की बातें साझा कीं—कैसे वह कॉलेज में नाटकों में हिस्सा लेती थी और कैसे उसने रोहन से पहली बार मुलाकात की थी।


अध्याय 3: एक अनकहा बंधन


समय बीतने के साथ, रमेश और अनन्या की नजदीकियाँ बढ़ने लगीं। सुबह की चाय से लेकर शाम की कहानियों तक, दोनों एक-दूसरे की संगति में सुकून पाने लगे। अनन्या ने हवेली के बगीचे को फिर से सजाना शुरू किया, और रमेश उसकी मदद करने लगे। वह अनन्या को पुराने गीत सिखाते, और अनन्या उन्हें अपने फोन पर नए गाने सुनाती। दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता पनपने लगा, जो न तो पूरी तरह प्रेम था, न ही केवल स्नेह। यह एक ऐसी भावना थी, जो सामाजिक बंधनों से परे थी।


एक रात, जब बिजली चली गई और हवेली अंधेरे में डूब गई, अनन्या डर गई। रमेश ने मोमबत्ती जलाकर उसे शांत किया और उसके पास बैठकर अपनी पत्नी की लिखी पुरानी कविताएँ सुनाईं। अनन्या ने रमेश की आँखों में एक ऐसी चमक देखी, जो उसे पहले कभी नहीं दिखी थी। रमेश भी अनन्या की मासूमियत और गर्मजोशी में खो गए। उस रात, जब अनन्या ने रमेश का हाथ थामकर कहा, "पिताजी, आपकी इन कविताओं में कितना दर्द और प्यार है," रमेश का दिल धड़क उठा। वह जानते थे कि यह भावना गलत नहीं थी, लेकिन समाज की नजरों में यह स्वीकार्य भी नहीं थी।


अध्याय 4: समाज की नजरें


जैसे-जैसे रमेश और अनन्या की नजदीकियाँ बढ़ीं, गाँव वालों की नजरें उन पर पड़ने लगीं। कुछ लोग उनके रिश्ते को गलत समझने लगे। गाँव की पंचायत में बातें होने लगीं, और अफवाहें रोहन तक पहुँच गईं। रोहन, जो अपनी नौकरी और शहर की जिंदगी में व्यस्त था, ने अनन्या को फोन किया और सवाल किए। अनन्या ने स्पष्ट किया कि रमेश और उसके बीच केवल सम्मान और स्नेह का रिश्ता है। लेकिन रोहन को गाँव की बातों ने परेशान कर दिया, और वह गाँव लौट आया।


रोहन ने रमेश और अनन्या से अलग-अलग बात की। रमेश ने उसे समझाया कि वह अनन्या को अपनी बेटी की तरह मानते हैं, लेकिन उनके दिल की गहराई में कुछ और ही था। अनन्या ने रोहन को बताया कि वह रमेश की देखभाल केवल अपने कर्तव्य के कारण करती है, लेकिन उसकी आँखों में एक अनकही पीड़ा थी। रोहन ने फैसला किया कि वह अनन्या को शहर ले जाएगा, ताकि गाँव की अफवाहें खत्म हो सकें।


अध्याय 5: अलविदा की घड़ी


जब अनन्या ने रमेश को अलविदा कहा, उसकी आँखों में आँसू थे। रमेश ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, "तुम जहाँ भी रहो, खुश रहो।" हवेली फिर से सूनी हो गई। रमेश रोज़ उस बगीचे में बैठते, जहाँ अनन्या ने फूल लगाए थे। उनकी यादें उनके दिल में हमेशा जिंदा रहीं। अनन्या शहर में रोहन के साथ एक नई जिंदगी शुरू करने की कोशिश करती, लेकिन रमेश की कविताएँ और उनकी गर्मजोशी उसे हमेशा याद आती।


अध्याय 6: एक अनकहे रिश्ते की गहराई


यह कहानी दुखद हो सकती है, लेकिन यह एक ऐसी भावना की कहानी है, जो समय, समाज, और रिश्तों की सीमाओं से परे थी। रमेश और अनन्या का रिश्ता शायद दुनिया की नजरों में गलत था, लेकिन उनके दिलों में यह एक अनमोल बंधन था। यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रेम और स्नेह की कोई सीमा नहीं होती, और कभी-कभी, सबसे खूबसूरत रिश्ते वही होते हैं, जो अनकहे रह जाते हैं।




 

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